
बार-बार मोच आने के कारण पैर में दर्द और अस्थिरता की समस्या
अगर आपको बार-बार टखने, कलाई या घुटने में मोच आ जाती है, तो आपने शायद यह बात कई बार सुनी होगी, “अरे, फिर से मोच आ गई?”
शुरुआत में लोग इसे हल्के में ले लेते हैं और सोचते हैं कि यह बस एक छोटी सी चोट है। लेकिन सच यह है कि बार-बार मोच आना सामान्य नहीं होता। यह शरीर का एक संकेत हो सकता है कि अंदर कुछ ठीक से काम नहीं कर रहा।
इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि मोच क्या होती है, बार-बार मोच क्यों आती है, इसे नज़रअंदाज़ करने के क्या नुकसान हो सकते हैं और इससे बचाव व इलाज कैसे किया जा सकता है।
मोच तब होती है जब जोड़ को सहारा देने वाले लिगामेंट अचानक खिंच जाते हैं या आंशिक रूप से फट जाते हैं। यह आमतौर पर तब होता है जब पैर या हाथ अचानक गलत दिशा में मुड़ जाता है।
अक्सर लोग दर्द कम होते ही सामान्य गतिविधियां शुरू कर देते हैं, जो आगे चलकर समस्या बढ़ा सकता है।
सबसे बड़ा कारण यह होता है कि पहली मोच को पूरी तरह ठीक नहीं होने दिया जाता। दर्द कम होते ही लोग चलना, दौड़ना या खेलना शुरू कर देते हैं, जबकि लिगामेंट अभी भी कमजोर होते हैं।
जब लिगामेंट ठीक से मजबूत नहीं होते, तो जोड़ अस्थिर रहता है। ऐसे में हल्की सी गलत मूवमेंट से फिर मोच आ जाती है।
जोड़ों को स्थिर रखने में आसपास की मांसपेशियां अहम भूमिका निभाती हैं। अगर ये मांसपेशियां कमजोर हों, तो संतुलन बिगड़ जाता है।
कुछ लोगों में बैलेंस कमजोर होता है, जिससे चलते समय पैर गलत पड़ जाता है और मोच की संभावना बढ़ जाती है।
खासतौर पर टखने की मोच में गलत जूते बड़ा कारण होते हैं। बिना सपोर्ट वाले जूते टखने को सही सहारा नहीं देते।
फुटबॉल, बास्केटबॉल, बैडमिंटन और रनिंग करने वालों में यह समस्या ज़्यादा देखी जाती है।
ज़्यादा वजन होने से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे मोच का खतरा बढ़ता है।
जिन्हें पहले गठिया, लिगामेंट इंजरी या फ्रैक्चर हो चुका हो, उनमें दोबारा मोच आने की संभावना अधिक रहती है।
अगर बार-बार मोच आने की समस्या को अनदेखा किया जाए, तो आगे चलकर गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं।
जोड़ धीरे-धीरे इतना कमजोर हो सकता है कि रोज़मर्रा की गतिविधियां भी मुश्किल हो जाएं।
बार-बार चोट लगने से जोड़ में समय से पहले गठिया विकसित हो सकता है।
अस्थिर जोड़ के कारण संतुलन बिगड़ता है, जिससे गिरने और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।
अगर मोच बार-बार आ रही है, तो एक्स-रे या MRI जैसी जांच की ज़रूरत पड़ सकती है ताकि लिगामेंट की स्थिति स्पष्ट हो सके।
फिजियोथेरेपी बार-बार मोच के इलाज का सबसे अहम हिस्सा है। इसमें:

मोच के बाद टखने की जांच और फिजियोथेरेपी उपचार
चलते समय या खेल के दौरान एंकल या कलाई ब्रेसेस लगाने से जोड़ को अतिरिक्त सहारा मिलता है।
दर्द और सूजन कम करने के लिए डॉक्टर द्वारा दवाइयां दी जा सकती हैं।
अगर लिगामेंट पूरी तरह फट चुके हों और बार-बार मोच आ रही हो, तो सर्जरी की सलाह दी जा सकती है।
दर्द कम होने का मतलब यह नहीं कि चोट ठीक हो गई है। पूरा रिकवरी समय देना ज़रूरी है।
यह भविष्य में मोच से बचाने में मदद करता है।
ऐसे जूते पहनें जो टखने को अच्छा सपोर्ट दें।

टखने की सुरक्षा के लिए सही और सपोर्टिव जूते पहनने का महत्व
बार-बार मोच आना सिर्फ एक छोटी चोट नहीं होती, बल्कि यह शरीर का संकेत हो सकता है कि जोड़ कमजोर हो चुका है। इसे समय रहते समझना और सही इलाज करवाना भविष्य की बड़ी समस्याओं से बचा सकता है। सही देखभाल और एक्सरसाइज से जोड़ों को दोबारा मजबूत बनाया जा सकता है।
यदि आपको बार-बार मोच आने, जोड़ों की कमजोरी या चलने में अस्थिरता महसूस हो रही है, तो डॉ. अंकुर सिंह द्वारा सटीक जांच और व्यक्तिगत उपचार योजना आपको लंबे समय तक सुरक्षित और सक्रिय जीवन जीने में मदद कर सकती है।